पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के दुर्भावनापूर्ण मंसूबे

सुरेंद्र मलनिया

आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के कारण 2001 में स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया पर प्रतिबंध लगने के बाद, आंदोलन से जुड़े प्रमुख व्यक्तियों जैसे ई एम अब्दुल रहिमन, ई. अबूबकर, प्रो. कोया और कुछ अन्य ने दक्षिणी राज्यों की मस्जिदों में कई गुप्त बैठकें कीं। सिमी को एक अलग रूप में प्रदर्शित करने के लिए कुछ वर्षों की गहन योजना के बाद, 2006 में पी. एफ. आई (सिमी का दूसरा रूप) की कल्पना की गई और अंततः 2009 में 3 संगठनों के विलय के साथ पी. एफ.आई ने आकार ले लिया। केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में प्रारंभिक वर्षों में इसकी उपस्थिति थी, लेकिन आज पीएफआई की उपस्थिति 1.5 लाख से अधिक सदस्यों के साथ 16 राज्यों में है।

PFI ने अपने ब्रांड को इस्लामी मूल्यों के रक्षक के रूप में प्रचारित किया है और दलित मुस्लिम एकता को प्रदर्शित करने का प्रयास किया है। हालांकि, खुले एजेंडे के अलग, इसके कई छिपे हुए उद्देश्य हैं जैसे कि सांप्रदायिक वैमनस्य को भड़काना तथा जबरन धर्मातरण और लव जिहाद, पी. एफ आई केरल में दो दर्जन लोगों को ISIS में शामिल होने के लिए प्रेरित करने के लिए भी जिम्मेदार है। 

पी. एफ आई अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल में प्रचार प्रसार करता है कि यह शैक्षिक सशक्तिकरण कानूनी रक्षा, फासीवाद का सामना करने, स्वास्थ्य व स्वच्छता, सामुदायिक विकास आदि के लिए प्रतिबद्ध है। इसके साथ साथ यह संगठन चुपचाप इस्लामोफोबिया को बढ़ावा दे रहा है और देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव फैला रहा है।



कोरोना राहत के लिए अपने प्रयासों को प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने जनवरी 20, 2021 को पुडुचेरी के मुख्यमंत्री श्री वी नारायण सामी को अपने कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया। मुख्यमंत्री ने पीएफआई की प्रशंसा की और इसको समाज का दोस्त बताया इसी क्रम में सीएम ने सुनामी के दौरान पी. एफ.आई द्वारा की गई सेवा को महान बताया। दिलचस्प बात यह है कि दिसंबर 2004 में आई सुनामी और भूकंप के दौरान पी. एफ. आई कभी अस्तित्व में नहीं था।

 पी.एफ.आई ने अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर सी एम पुडुचरों के साथ समारोह का वीडियो पास्ट किया था और सीएम ने भी अपने ट्विटर हैंडल पर समारोह में भाग लेने के बाद पोस्ट किया था। यह पी. एफ. आई की एक विशिष्ट रणनीति है कि मुख्यधारा के दलों के राजनैतिक नेताओं को फंसाने के लिए उनकी असामाजिक और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को ढंकने के लिए प्रचार किया जाता है, जिससे निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा जनता को गुमराह किया जा सके।

उदाहरण के लिए, पी. एफ.आई पूरे देश में 1300 से अधिक आपराधिक मामलों में शामिल है। इसी संबंध में कथित ईशनिंदा के लिए प्रो. जोसेफ के हाथ काटने का मामला स्पष्ट रूप से अन्य धर्मों के प्रति संगठन की घृणा को स्पष्ट करता है। पुडुचेरी के निकट ही के तंजावुर जिले में, एक व्यक्ति रामलिंगम की 5 फरवरी, 2019 को पीएफआई द्वारा बहुत ही क्रूर तरीके से हत्या कर दी गई थी, क्योंकि उसने पी. एफ आई की धार्मिक प्रचार व धर्मांतरण गतिविधियों पर सवाल उठाया था। 

मामले की जांच करने वाली एनआईए ने 18 पी. एफ. आई. कार्यकर्ताओं के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी। पिछले एक दशक में ऐसे कई मामलों में पी. एफ.आई की असहिष्णुता साफ झलक रही है। केरल में, कई लड़कियां जिन्हें इस्लाम मज़हब में शामिल कर दिया गया तथा पी.एफ.आई में शामिल किया गया, उनके पास निजी तौर पर बताने के लिए भयानक कहानी है। पी. एफ. आई द्वारा अदालतों में गढ़े जाने वाले मानहानि के मामलों के डर से, केरल में कई कार्यकर्ता चुप रहे।

जब पी. एफ.आई की ऐसी आपराधिक गतिविधियों के बारे में पता चलता है, तब भी राजनैतिक नेता चुनावी कारणों से उनके कार्यों में भाग लेकर उन्हें तुमाते हैं और यह जनता के हित में कतई भी नहीं है। आज के जागरूक भारतीय नागरिक पीएफआई के गलत मंसूबे को पहचान सुका है और इसको आगे फलित नहीं होने देगा।

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