पी.एफ.आई.: SIMI का पुनर्जन्म

सुरेंद्र मलनिया 

SIMI किसी परिचय का मोहताज नहीं है। आजादी के बाद यह धर्म आधारित पहला संगठन था जो कि भारत विरोधी आतंक गतिविधियों के कारण सामने आया था। इसमें जन स्तर पर इस्लामोफोबिया के कथा को प्रकाशित कर भावनाओं को जगा कर मुख्यतः मुस्लिम युवाओं को जागृत करने की क्षमता, इसके और संगठनों से अलग बनाता है। SIMI के इसके आतंकी गतिविधियों में सामिल होने के कारण इस पर 2001 में प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद पी. एफ.आई. के कुछ प्रख्यात एवं बेहद प्रेरित सदस्यों जैसे ई.एम.अब्दुल रहिमन अब्दुल हमीद एवं पी. कोया ने बहुत बार बैठक की और एक अलग तरीके से सीमी को पुनर्जीवित किया और कुछ वर्गों के गहन योजना के बाद सन 2006 में पी.एफ.आई के विचार के रूप में सामने आया। संगठन अपने पूर्ण में स्वरूप सन् 2009 में आया जब एन.डी.एफ कर्नाटक फोरम फॉर डिगनिटी कर्नाटक एवं मनविर निधि परासाई, तमिलनाडू का विलय कर दिया गया।

 SIMI के तरह ही पी.एफ. आई साधारण मुसलमानों में नाराजगी को प्रचारित करने की रणनीति अपनाता है और उनके प्रतिकिया और निश्ठा को देखते हुए यह अपने कैडरों को चयनित करता है जिसे बाद में दिग्ग्रमित कर उन्हें हथियार चलाकर हाथापाई और आई.ई.डी बनाने जैसे प्रशिक्षण दिया जाता है। इन प्रशिक्षित कैडरों का इस्तेमाल बाद में जन मानसों में हिंसा फैलाने, आतंक फैलाने एवं समाज एवं देश विरोधी वातावरण बनाने में किया जाता है। नारथ हथियार प्रशिक्षण, पदम जंगल आई.ई. डी बनाने संबंधी प्रशिक्षण, अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठन जैसे आई.एस.आई. एवं अल-कायदा से संबंध पी.एफ.आई द्वारा किए गए पिछले कुछ सालों का भारत विरोधी गतिविधियों का उदाहरण है। सन् 2012 में केरल सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि पी. एफ.आई की गतिविधि देश की रक्षा के लिए प्रतिकूल है और यह कुछ नहीं बल्कि प्रतिबंधित SIMI का दूसरा पुनर्जीवित अवतार है। SIMI के ही पथ पर चल रहे पी. एफ.आई भी पैन इस्लाम में और भारत में खलीफा साम्राज्य की वकालत करता है। 

रहिमन, हमीद एवं कोया के अलावा भी पी. एफ.आई की सेवा में लगे हुए सदस्यों का जड़ सीमी से जुड़ा हुआ है। इनमें से कुछ प्रमुख जिनमें ई. अबुबकर, अहमद शरीफ, शहीद खोट इत्यादि है। SIMI पर लगे प्रतिबंध को अगले 5 साल तक विस्तार फरवरी 2019 करते समय गृहमंत्रालय की एक अधिसूचना कहती है। “यदि SIMI की गैर कानूनी गतिविधि को तुरंत रोका न गया तो यह अपनी विध्वंसक गतिविधियों को जारी रखेगा, अपने कार्यकर्ताओं को फिर से संगठित करेगा......"। गृह मंत्रालय ने 58 मामलों को सूचीबद्ध किया जहां देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के सदस्य राष्ट्र-विरोधी भावनाओं का प्रचार कर रहे थे और सिमी से संबंधित थे। कोई आश्चर्य नहीं, पीएफआई- सिमी के साथ समान जड़ें, मुस्लिम जनता विशेषकर युवाओं के बीच राष्ट्र विरोधी भावनाओं, तोड़फोड़ और खिलाफत विचारधारा को बढ़ावा देने में शामिल है।   

पीएफआई अपने गठन के समय से ही जिहाद को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है और उसके प्रशिक्षण शिविरों में जिहाद पर कक्षाएं संचालित की जा रही हैं जैसा कि नारथ प्रशिक्षण शिविर स्थल से बरामद साहित्य के माध्यम से पता चला है। केरल सरकार के अनुसार, 2012 में, PFI के सदस्य 27 हत्या के मामलों में सक्रिय रूप से शामिल थे, जबकि दो साल बाद (2014) PFI के खिलाफ 86 हत्या के प्रयास के मामले दर्ज किए गए थे! केवल दो वर्षों में घातीय उछाल। यह आंकड़ा सिर्फ 7 साल की अवधि में हजार अंक को पार कर गया! केरल पुलिस के अनुसार, कम से कम 10 लोग जो पीएफआई का हिस्सा थे, जो इस्लामिक स्टेट के लिए लड़ने के लिए सीरिया गए थे। पीएफआई (तत्कालीन) के कन्नूर जिला अध्यक्ष वीके नौफल ने एक बयान जारी किया कि शमीर और मनाफ जो सीरिया में लड़ने के लिए गए थे, वे पीएफआई के कार्यकर्ता थे, लेकिन खाड़ी के लिए रवाना होने के बाद उन्होंने हमारे साथ सभी संबंध तोड़ लिए।   

 सिमी पर प्रतिबंध लागू होने के बाद हमने सैकड़ों युवाओं की स्थिति देखी। जब सिमी अपना जहर फैला रहा था, तब मुस्लिम बुद्धिजीवी चुप रहे, जिसके परिणामस्वरूप हजारों युवा मुसलमानों का उज्ज्वल भविष्य नष्ट हो गया। अब, जबकि पीएफआई फिर से युवाओं का ब्रेनवॉश कर रहा है और नफरत फैला रहा है (जैसा कि हाल ही में हिजाब पंक्ति से स्पष्ट है), मुस्लिम बुद्धिजीवी फिर से यह सोच रहे हैं कि किसी व्यक्ति के हस्तक्षेप से कुछ हासिल नहीं होगा। हालांकि, व्यक्तिगत हस्तक्षेप से कभी-कभी जन आंदोलन हो सकते हैं। समय आ गया है कि सच्चे मुसलमान खुलकर सामने आएं और पीएफआई जैसे चरमपंथी संगठनों का खुलकर विरोध करें अन्यथा सिमी के उलट इस बार लाखों मुस्लिम युवा अपना भविष्य तबाह होते हुए देखेंगे।

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